दुनिया में जो नहीं है,उसको बता रहे हैं

                          दुनिया में जो नहीं है उसको बता रहे हैं।
                          अंधों को रात में ये सूरज दिखा रहे हैं।।

                          माता-पिता हैं जीवित, पानी नहीं पिलाते,।
                          मरने के बाद उनको, पिंड़ा खिला रहें हैं।।

                          रच-रच के मूर्ति गढ़ते, दुर्गा, गणेश काली।
                          करके करोड़ खर्चा, उनको डुबा रहे हैं।।

                          बच्चों को हैं पढ़ाते, विद्वान हैं बनाते।
                          शादी के वक्त उनसे, गोबर पुजा रहें है।
                          पत्थर की मूरतों को मिष्ठान हैं चढ़ाते।।

                          घंटा बजा-बजा के खुद ही उड़ा रहे हैं।
                          निर्जीव मूर्तियों की आदर से करते सेवा।।

                          इंसान जो हैं जीवित, उनको भगा रहें हैं।
                          कहते ‘प्रसाद‘ हैं अब, अन्धविश्वास छोड़ो।।